अलंकार, हिंदी साहित्य में भाषा की सौंदर्यवादिता और व्याकरण का अद्वितीय पहलु है। यह विशेष शब्द, वाक्य, या पंक्तियों को सुंदरता, विविधता, और प्रभावशीलता से सजाने का काम करता है। अलंकारों का प्रयोग कविताओं, गीतों, कहानियों, और नाटकों में भाषा को समृद्ध और रंगीन बनाने के लिए होता है। इस लेख में, हम अलंकारों के भिन्न-भिन्न प्रकारों, उनके उदाहरणों, और उनके साहित्यिक महत्व को समझेंगे।
अलंकार का अर्थ
अलंकार का अर्थ “सजावट करना” या “भाषा की सुंदरता को बढ़ाने का काम” होता है। इसे हिंदी साहित्य में भाषा की सौंदर्यवादिता और व्याकरण का अद्वितीय पहलु माना जाता है। अलंकार विशेष शब्द, वाक्य, या पंक्तियों को सुंदरता, विविधता, और प्रभावशीलता से सजाने का काम करता है। अलंकार सुन्दर वर्णो से बनते हैं और काव्य की शोभा बढ़ाते हैं। ‘अलंकार शास्त्र’ में आचार्य भामह ने इसका विस्तृत वर्णन किया है। इसका मुख्य उद्देश्य भाषा को अधिक प्रभावशील बनाना होता है, ताकि पाठक या सुनने वाला व्यक्ति उसमें आकर्षित हों और उसका महत्व समझें।
अलंकार के भेद
व्याकरणविदों के मतों के अनुसार अलंकारों के मुख्यतः तीन भेद होते हैं
शब्दालंकार
शब्दालंकार, हिंदी साहित्य में अलंकारों का एक महत्वपूर्ण प्रकार है, जो शब्दों के खेल के माध्यम से भाषा को सजावट और चित्रण करता है। शब्दालंकार का उपयोग विभिन्न शब्दों और उनके रूपों का उत्तम उपयोग करके विविधता, सुंदरता, और प्रभावशीलता को बढ़ाता है। ये वर्णगत, वाक्यगत या शब्दगत होते हैं; जैसे-अनुप्रास, यमक, श्लेष आदि।
अर्थालंकार
अर्थालंकार की निर्भरता शब्द पर न होकर शब्द के अर्थ पर आधारित होती है। मुख्यतः उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, अतिशयोक्ति, दृष्टांत, मानवीकरण आदि मुख्य अर्थालंकार हैं।
उभयालंकार
उभयालंकार” एक विशेष प्रकार का अलंकार है जिसमें शब्दों का उपयोग किया जाता है ताकि वे दोनों अर्थों में सही हों। इसका प्रयोग करते समय शब्दों की दोहरी भावना का उल्लेख किया जाता है, जिससे पाठक वाक्य का अर्थ उनकी पसंद के अनुसार समझ सकते हैं। जहाँ काव्य में शब्द और अर्थ दोनों से चमत्कार या सौन्दर्य परिलक्षित हो, वहाँ उभयालंकार होता है।
शब्दालंकार के प्रमुख भेद
शब्दालंकारों के प्रमुख भेद निम्नलिखित हैं:
अनुप्रास: इसमें एक वाक्य में आवाज के प्रयोग में समानता होती है, जैसे “सुनील सुंदरता से सजा संदेश सुनाता है।”
“सुनील सुंदरता से सजा संदेश सुनाता है” वाक्य में “स” ध्वनि का अनुप्रास है, जो कि उपमा अलंकार का उदाहरण है। इसमें “सुनील”, “सुंदरता”, “सजा”, और “संदेश” शब्दों में “स” ध्वनि का प्रयोग हुआ है, जो वाक्य को आकर्षक और मनोहारी बनाता है।
यमक: यमक अर्थात् ‘युग्म’। यमक में एक शब्द की दो या अधिक बार आवृत्ति होती है और अर्थ भिन्न-भिन्न होते हैं; जैसे-
- कनक कनक ते सौ गुनी मादकता अधिकाय।
वा खाये बौराय नर वा पाये बौराय।। - वह बाँसुरी की धुनि कानि परे, कुल कानि हियो तजि भाजति है।
पहले उदाहरण में ‘कनक’ शब्द की दो बार आवृत्ति है। ‘कनक’ के दो अर्थ हैं- धतूरा तथा सोना, अतः यहाँ यमक अलंकार है। दूसरे उदाहरण में ‘कानि शब्द की दो बार आवृत्ति है। प्रथम ‘कानि’ का अर्थ ‘कान’ तथा दूसरे ‘कानि’ का अर्थ ‘मर्यादा’ है, अतः यमक अलंकार है।
श्लेषः “श्लेष” अलंकार में, एक शब्द का दोहरा अर्थ होता है। यह अलंकार वाक्य को अधिक गहन बनाने में मदद करता है और उसे आकर्षक बनाता है। श्लेष अलंकार का उपयोग निम्नलिखित उदाहरणों में किया गया है:
- “अबकी बार, नहीं, लोहा ही लोहा है” – यहाँ “अबकी बार” शब्दों का अर्थ उल्टा है।
- “चले चले चले, चले चले चले” – यहाँ “चले” शब्द का दोहरा अर्थ है।
- “याद आती है, तेरी याद आती है” – यहाँ “याद” शब्द का दोहरा अर्थ है।
अर्थालंकार के प्रमुख भेद
अर्थालंकारों के प्रमुख भेद निम्नलिखित हैं:
उपमा: इसमें एक वस्तु को दूसरी वस्तु के समान कहा जाता है। उपमा अलंकार का उपयोग निम्नलिखित उदाहरणों में किया गया है:
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- वह उत्तम तुलसीदास की तरह कविता लिखता है।
- उसकी मुस्कान सूरज की तरह चमक रही थी।
- वह उत्तम सुदर्शन की तरह धरती को सुरक्षित करता है।
इन उदाहरणों में, “तुलसीदास”, “सूरज”, और “सुदर्शन” को उस व्यक्ति या वस्तु के रूप में प्रस्तुत किया गया है जिसके लक्षण या गुणों का हमारे मन में एक विशेष छवि बनती है।
रूपक: इसमें एक वस्तु को दूसरी वस्तु के साथ समाहित किया जाता है, जैसे “वह शेर है।” रूपक अलंकार का उपयोग निम्नलिखित उदाहरणों में किया जाता है:
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- स्त्री के मुख की रात के संगम से चांदनी झिलमिलाती है।
- उसके आँखों की शोभा मन को बहकाने वाली होती है।
- उसका मुँह सूरज के समान चमक रहा था।
इन उदाहरणों में, “रात के संगम”, “आँखों की शोभा”, और “मुँह” को चांदनी, मन की भ्रमणशीलता और सूर्य के रूप में प्रस्तुत किया गया है, जिससे उनकी विशेषता और गुणों का उजागर किया जाता है।
उत्प्रेक्षा: “उत्प्रेक्षा” अलंकार में, एक विशेष स्थान या दिशा के संदर्भ में अर्थ को समझाने के लिए प्रयोग किया जाता है। इस अलंकार में किसी व्यक्ति, स्थान, या वस्तु की दूरी या दिशा को संदर्भित करके अर्थ को समझाया जाता है। उत्प्रेक्षा अलंकार का उपयोग निम्नलिखित उदाहरणों में किया गया है:
- “उसकी आँखों की उत्प्रेक्षा में मुझे एक परिदृश्य नजर आया।”
- “उसने उज्जवल सूरज की उत्प्रेक्षा में आकाश में उड़ते हुए चिड़ियों को देखा।”
- “उसके बालों की उत्प्रेक्षा में अब उसका अंतिम समय आ गया था।”
- सोहत ओढ़ै पीत पट स्याम सलोने गात।
मनो नीलमनि सैल पर आतप परयो प्रभात।।
अर्थात् श्रीकृष्ण के श्यामल शरीर पर पीताम्बर ऐसा लग रहा है मानो नीलम पर्वत पर प्रभाव काल की धूप शोभा पा रही हो।
अतिशयोक्ति: “अतिशयोक्ति” अलंकार में, किसी वस्तु या व्यक्ति की गुणों, लक्षणों, या प्रयोजनों की उत्कृष्टता का वर्णन किया जाता है। इस अलंकार में, गुणों का अधिक महत्वपूर्ण और प्रभावी रूप से वर्णन किया जाता है। जब किसी की अत्यन्त प्रशंसा करते हुए बहुत बढ़ा-चढ़ाकर बात की जाए तो अतिशयोक्ति अलंकार होता है। अतिशयोक्ति अलंकार का उपयोग निम्नलिखित उदाहरणों में किया गया है:
- “उसकी मुस्कान तो सूरज के समान थी, जो पूरे कमरे को चमक देता था।”
- “वह दया का संदास था, जो हर किसी को अपने प्रेम से सराबोर कर देता था।”
- “उसकी बुद्धि एक अक्षरशः किताबों के समान थी, जो अपनी विविधता में अद्वितीय थी।”
- हनुमान की पूँछ में, लगन न पाई आग।
लंका सगरी जरि गई,गए निशाचर भाग।।
चौथे पद्यांश में हनुमान की पूँछ में आग लगने के पहले ही सारी लंका का जलना और राक्षसों के भाग जाने का बढ़ा-चढ़ाकर वर्णन किया है, अतः अतिशयोक्ति अलंकार है।
मानवीकरण: “मानवीकरण” अलंकार में, वाक्य के अर्थ को अत्यंत ही कम कर देने के लिए किसी व्यक्ति, वस्तु, या घटना के आधार पर प्रयोग किया जाता है। जहाँ कवि काव्य में भाव या प्रकृति को मानवीकृत कर दे, वहाँ मानवीकरण अलंकार होता है।
एक उदाहरण: “उसके अश्रुधारित चेहरे ने उसके दुख की कहानी सुना दी।”
यहाँ अश्रुधारित चेहरे को किसी गुणगान करते व्यक्ति के रूप में मानवीकृत किया गया है, अतः मानवीकरण अलंकार है।