Famous musical instruments and their instruments: संगीत का महत्वपूर्ण अंग वाद्य यंत्र है, जिनमें विभिन्न ढंग के संगीतकारों और वादकों द्वारा संगीत की आत्मा को अभिव्यक्ति दी जाती है। इन वाद्य यंत्रों की सुंदरता, उनकी ध्वनि, और उनके वादकों की कला ने समृद्ध संगीत संसार को अपनी ओर आकर्षित किया है। इस लेख में, हम प्रमुख वाद्य यंत्रों की परिचय और उनके प्रमुख वादकों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे, जो संगीत के इस आधुनिक युग में एक अद्वितीय स्थान धारण करते हैं।
वाद्य यंत्र क्या होते हैं?
वाद्य यंत्र अर्थ है बजाने योग्य यन्त्र विशेष। यह शब्द वद्य धातु से उत्पन्न होता है। जो बोलता है, वही वाद्य यंत्र है। वाद्यों को बजाने में हमें स्वर व शब्द बोलते हुए प्रतीत होते है। वाद्य या बाजे शब्द के लिए तीन पर्याय मिलते हैं- वाद्य, वादित्र और अतोध। वाद्य और वादित्र में और सुशीर वाद्य माने गये हैं और अतोध के अन्तर्गत वे वाद्य यंत्र हैं जो पीट कर बजाए जाते हैं।
वाद्य यंत्रों के प्रकार
भारत का संगीत विभिन्न वाद्यों से समृद्ध हुआ है। विभिन्न प्रकार के सांगीतिक वाद्य यंत्रों में से कुछ के विवरण यहाँ दिए गए हैं।
वाद्य यंत्रों के प्रकार |
वायु वाद्य यंत्र |
ताल वाद्य यंत्र |
तंतू वाद्य यंत्र |
बांसुरी |
तबला |
गिटार |
कलरीनेट |
मृदंगम |
वायोलिन |
शहनाई |
ढोल |
सितार |
सैक्सोफोन |
ढोलक |
बैंजो |
मशक बाजा |
झांझ |
सरोद |
हारमोनिका |
सिलाफ़न |
सारंगी |
तुरही |
घटम |
वीना |
पियानो |
पखावज |
सुरबहार |
हार्प |
घंटी |
मैंडोलिन |
1. सारंगी- गायन तथा नृत्य रूप से कल्पक नृत्य के साथ संगीत में प्रयुक्त होने वाला एक प्रचलित वाद्य यंत्र है। इसमें प्रमुख चार तार होते है तथा गूँज के लिए 11 तरब के तार होते हैं। इसका वादन गज से किया जाता है।
2. सरोद- यह वाद्य तंत्र वाद्यों के अन्र्तगत एक सुविख्यात वाद्य है। इसे शारदीय वीणा का अपभ्रंश माना जाता है। यह काष्ठ का बना होता है। जिसमें ऊपर की ओर चमड़ा मढ़ा हुआ रहता है।
3. सरस्वती वीणा या तंजीर वीणा- वाद्यों में सरस्वती वीणा या तंजीरी वीणा का प्रमुख स्थान है। इस वीणा का उल्लेख ‘‘संगीत मकरंद’’, ‘‘अभिनव भारती’’ जैसे ग्रन्थों में भी मिलता है।
4. सुरबीन- इसे बजाने के लिए काष्ठ खण्ड का प्रयोग किया जाता है। कुछ वादक तारों को दबाकर स्वर निकालने के लिए काँच के गोले या बाँस के टुकड़ें का भी प्रयोग करते हैं।
5. तानपुरा- इसका वादन गायन तथा वादन की संगत के लिए किया जाता है। इसमें चार तार होते हैं, जिसे गायक रागानुसार प़ ससा स़ा अथवा म़ सा सा स़ा में मिलाते हैं।
6. इसराज- इसराज एक प्रकार से सितार का ही रूपांतर है। इस वाद्य का प्रयोग गायन के साथ संगति के लिए किया जाता है। इसे दिलरूबा के नाम से भी जाना जाता है। इसमें सितार के समान ही परदे होते हैं। इसराज वादक इसे बाँये कंधे पर टिकाकर एवं इसके निचले सिरे को गोदी में रखकर हाथ की अंगुलियों से दबाकर स्वर निकालते हैं। तथा दाहिने हाथ में लिये हुए गज से तारों को रगड़ने से स्वर पैदा होता है। इस वाद्य में एक डाँड होती है जो तूँबे से जुड़ी होती है तथा डाँड पर ही विभिन्न स्वरों के पर्दे बँधे होते हैं।
7. रूद्ध वीणा- यह वीणा के नाम से भी जानी जाती है। इस वीणा में दो तूँम्बे होते हैं जो डाँड के दोनो सिरों पर जुड़े रहते हैं। इसके वादन के लिए रूद्ध वीणा वादक इसके बायें तूँम्बे को बायें कंधे पर रखकर तथा दाहिने तूँबे को अपनी दाहिनी ओर रखकर दाहिने हाथ की कनिश्ठा उँगुली से डाँड से ऊपर तारों को दबाकर स्वर की उत्पत्ति करते हैं। उत्तर भारतीय संगीत में इसी वीणा का एक अन्य प्रकार ‘‘विचित्र वीणा’’ भी प्रचलित है।
8. तुण्डकी या तुरूतरी- यह दो हाथ की लम्बाई वाला वाद्य यंत्र है। इसे जोड़ी में बजाया जाता है।
9. शृंग- जैसा की इसके नाम से ही स्पष्ट होता है इसे, भैंस के सींग से बनाया जाता है। यह आठ अंगुल लम्बा होता है एवं इसकी ध्वनि गंभीर होती है। यह भिन्न-2 प्रदेशों में भिन्न-2 नामों से जाना जाता है। जैसे भील इसे सिंगा कहते हैं।
10. शंख- इससे सात स्वरों की उत्पत्ति नहीं होती, किन्तु इसका प्रयोग युद्ध में युद्धारंग की घोषणा व युद्ध समाप्ति की घोषणा के लिए किया जाता था। आज भी शंख का प्रयोग धार्मिक कार्यों में एवं सभी प्रकार के मांगलिक कार्यों में किया जाता है।
11. नागस्वर- इसका वादन शादी, जुलूस आदि मांगलिक अवसरों पर एवं धार्मिक कार्यों में मंदिरों में किया जाता है। यह वाद्य यंत्र बहुत कुछ उत्तर भारत में प्रचलित शहनाई वाद्य यंत्र से मिलता जुलता है, किन्तु आकार में शहनाई से दुगना लंबा होता है।
12. मुख वीणा- यह छोटा नागस्वर है। इसका प्रयोग नाट्य में होता है किन्तु आजकल इसके वादन का प्रचलन कम हो गया है एवं इसका स्थान क्लेरिनेट ने ले लिया है।
13. शहनाई- इसका प्रयोग विवाह आदि मांगलिक अवसरों पर किया जाता है। इस वाद्य यंत्र का प्रचार ईस्वी 16 से पाया जाता है। इस वाद्य यंत्र पर शास्त्रीय संगीत का प्रभावपूर्ण वादन होता है।
14. नागफनी- जैसा कि नाम से ही विदित होता है इसका आकार नाग के फन के समान होता है। यह वाद्य यंत्र बहुत कुछ रणसिंगा या नरसिंग नाम के वाद्य यंत्र से मिलता जुलता है।
15. अलगोजा- यह जोड़ी में बजने वाला वाद्य यंत्र है। ये बांस से निर्मित होता है जिसमें 3 से 4 छिद्र होते हैं। जोड़ी में बजने के कारण ध्वनि बड़ी ही मधुर प्रतीत होती है।
16. तुरही- ये धातु का बना एक हाथ लंबा वाद्य यंत्र है। इसका प्रयोग मांगलिक अवसरों पर किया जाता है। इसमें कोई भी छिद्र नहीं होता है। केवल हवा फूँक कर उसके विभिन्न दबावों से स्वरों की उत्पत्ति की जाती है। इसलिए इसमें 2 अथवा 3 स्वरों से ज्यादा उतार चढाव संभव नहीं है। इसकी ध्वनि तीक्ष्ण होती है।
17. बीन- यह वाद्य यंत्र तूम्बे तथा काष्ठ से निर्मित होता है। तूम्बे के एक ओर बाँस की दो नलिकाऐ होती हैं। इनमें 3-4 सुराख किए जाते हैं एवं तूम्बे के दूसरे सिरे को काष्ठ की एक पोली नली से जोड़ा जाता है। इस नली के एक सिरे से फूँककर इस वाद्य यंत्र को बजाया जाता है।
18. नड़ा- भैरव का गुणगान करने के लिए भोपे लोग मषक की तरह जिस वाद्य यंत्र को फूँक द्वारा बजाते हैं उसे नड़ कहते हैं।
19. घण्टा- यह चार सेमी0 से लेकर 12 सेमी0 तक के व्यास वाला पीतल से निर्मित वाद्य यंत्र होता है। उसे डोरी से लटका कर धातु अथवा लकड़ी के हथौड़े से आघात करके बजाया जाता है। इसका प्रयोग मंदिरों में पूजा अर्चना के अवसर पर किया जाता है।
20. खड़ताल- यह लकड़ी की बनी हुई 11 अँगुल लंबी खण्ड युक्त होती है, जिसके खण्डों के मध्य धातु की गोल पत्तियों को लगाया जाता है। इसका वादन मंदिरों में कीर्तन के साथ किया जाता है।
21. मंजीरा- यह तीन इंच से लेकर 12 तथा 16 इंच तक व्यास वाले पीतल आदि धातु से निर्मित गोलाकार होते हैं। यह जोड़े में होते हैं। इन्हें आपस में टकरा कर ध्वनि उत्पन्न की जाती है। इसका प्रयोग प्राय: मंदिरों में देवी-देवताओं की स्तुति के अवसर पर किया जाता है।
महत्वपूर्ण संगीत वाद्ययंत्र और उनके वादकों की सूची
यहाँ कुछ प्रमुख संगीत वाद्ययंत्र और उनके वादकों की सूची है:
संगीत वाद्ययंत्र और उनके वादक |
वाद्य यंत्र |
वादक का नाम |
संतूर |
पंडित शिव कुमार शर्मा, भजन सोपोरी |
बांसुरी |
हरि प्रसाद चौरसिया, पन्नालाल घोष |
तबला |
जाकिर हुसैन, अल्लाह रक्खा, साबिर खान, पं० किशन महाराज, पं० ज्ञान प्रकाश घोष |
सरोद |
अलाउद्दीन खान, अली अकबर खान, अमजद अली खान, बुद्धदेव दास गुप्ता |
शहनाई |
बिस्मिल्ला खान, कृष्णा राम चौधरी, अली अहमद हुसैन |
सितार |
पंडित रवि शंकर, शाहिद परवेज खान, बुधादित्य मुखर्जी, अनुष्का शंकर |
सारंगी |
शकूर खान, पंडित राम नारायण, रमेश मिश्रा, सुल्तान खान |
वीना |
जिया मोहिउद्दीन डागर, अय्यागारि स्यामसुंदरम, दोरईस्वामी आयंगर |
रुद्र वीणा |
असद अली खान |
मोहन वीणा |
पं० विश्व मोहन भट्ट (मोहन वीणा के आविष्कारक) |
वायोलिन |
सुश्री. गोपालकृष्णन, श्रीमती एम राजम, एन.आर. मुरलीधरन, एम चंद्रशेखरन, वी.जी. जोग, लालगुडी जयरामन |
घटम |
टी०एच० विनायकराम, ई०एम० सुब्रमण्यम |
मृदंगम |
के०वी० प्रसाद, एस० वी० राजा राव, उमलयापूरम शिवरामन |
मैंडोलिन |
यू श्रीनिवास |
पखावाज |
तोताराम शर्मा |
सुरबहार |
अन्नपूर्णा देवी |
गिटार |
ब्रज भूषण काबरा |
गायक (कर्नाटक संगीत) |
राधाकृष्ण एस श्रीनिवास अय्यर, एम० एस० सुब्बुलक्ष्मी, एम० बालमुरलीकृष्ण, डी० के० पट्टाम्मल, रामानुज आयंगर अरियाकुडि, एस० पिनाकापानि |
गायक (हिन्दुस्तानी संगीत) |
कुमार गंधर्व, मल्लिकार्जुन मंसूर, भीमारायप्पा, भीमसेन जोशी, पंडित जसराज, गंगूबाई हंगल, किशोरी अमोनकर, बड़े गुलाम अली खान, रहीम फहीमुद्दिन डागर, छन्नु लाल मिश्रा, रमाकांत गुन्डेचा, उमाकांत गुन्डेचा, राजन और साजन मिश्रा |
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