मुहावरे और लोकोक्तियाँ हमारी भाषा की सुंदरता और विविधता का प्रतीक होते हैं। ये शब्द और वाक्यांश ऐसे होते हैं जो हमारे जीवन के अनुभवों, जानकारियों, और संस्कृति को समर्पित होते हैं। मुहावरे और लोकोक्तियाँ अक्सर हमारे बोलचाल में प्रयोग होते हैं और हमारे विचारों को सार्थकता और गहराई देते हैं। इनका उपयोग हमें व्याकरण और साहित्य की रचनाओं में भी मिलता है। यहाँ हम मुहावरों और लोकोक्तियों के अर्थ, प्रकार, और उनके उपयोग को समझने का प्रयास करेंगे।
मुहावरे किसे कहते हैं?
मुहावरे हिंदी भाषा में विशेष रूप से प्रयोग होने वाले वाक्यांशों को कहते हैं जिनका अर्थ अक्षरशः सीधा नहीं समझा जा सकता है। ये वाक्यांश उन्हीं सांस्कृतिक, सामाजिक, ऐतिहासिक, या व्यक्तिगत परिस्थितियों को दर्शाने के लिए प्रयुक्त होते हैं। इन्हें सामान्यत: सामूहिक अनुभव या आधुनिक जीवन की स्थिति को दर्शाने के लिए उपयोग किया जाता है।
उदाहरण
- छक्के छुड़ाना – हारना
- पौ बाहर होना – लाभ ही लाभ होना
- जौहर खुलना – भेद का पता लगना
- नौ-दो ग्यारह होना – रफू चक्कर होना
लोकोक्तियाँ किसे कहते हैं?
अर्थ को पूरी तरह स्पष्ट करने वाला वाक्य लोकोक्ति कहलाता है। लोकोक्ति को कहावतें भी कहते हैं। कहावतें कही हुई बातों के समर्थन में होती है। महापुरुषों, कवियों व संतों के कहे हुए ऐसे कथन जो स्वतंत्र और आम बोलचाल की भाषा में कहे गए हैं जिसमें उनका भाव निहित होता है तो ये लोकोक्तियाँ कहलाती है। प्रत्येक लोकोक्ति के पीछे कोई न कोई घटना व कहानी होती है।
उदाहरण
- बारह गाँव का चौधरी अस्सी गाँव का राव, अपने काम न आवे तो ऐसी-तैसी में जाव
अर्थः बड़ा होकर यदि किसी के काम न आए, तो बड़प्पन व्यर्थ है। - बारह बरस पीछे घूरे के भी दिन फिरते हैं
अर्थः एक न एक दिन अच्छे दिन आ ही जाते हैं। - बासी कढ़ी में उबाल नहीं आता
अर्थः काम करने के लिए शक्ति का होना आवश्यक होता है। - बासी बचे न कुत्ता खाय
अर्थः जरूरत के अनुसार ही सामान बनाना।
मुहावरे और लोकोक्ति में अंतर
मुहावरा पूर्णतः स्वतंत्र नहीं होता है, अकेले मुहावरे से वाक्य पूरा नहीं होता है। लोकोक्ति पूरे वाक्य का निर्माण करने में समर्थ होती है। मुहावरा भाषा में चमत्कार उत्पन्न करता है जबकि लोकोक्ति उसमें स्थिरता लाती है। मुहावरा छोटा होता है जबकि लोकोक्ति बड़ी और भावपूर्ण होती है।
मुहावरों की सूची
- अक्ल का अंधा- मूर्ख व्यक्ति; जिसमें समझ न हो।
- अक्ल घास चरने जाना- समझ का अभाव होना।
- अक्ल का दुश्मन- मूर्ख व्यक्ति।
- अगर-मगर करना- आनाकानी या टालमटोल करना; बहाने बनाना।
- अपना उल्लू सीधा करना- अपना मतलब निकालना।
- अपने मुँह मियाँ मिट्ठू बनना- अपनी प्रशंसा स्वयं करना।
- अपने पैरों पर खड़ा होना- स्वावलंबी होना।
- आस्तीन का साँप- किसी अपने या निकट व्यक्ति द्वारा धोखा देना, कपटी मित्र।
- आसमान से बातें करना- बहुत ऊँचा होना या तेज़ गति वाला।
- आँख का तारा- बहुत प्रिय होना।
- आँखें खुलना- जागना, वास्तविकता से अवगत होना, भ्रम दूर होना, सचेत होना।
- आँखें चार होना- प्रेम होना, आमना-सामना होना।
- आँखों में धूल झोंकना- धोखा देना।
- अंगार उगलना- अत्यंत क्रुद्ध होकर अपशब्द कहना।
- अंधे की लाठी- एकमात्र सहारा।
- उखड़ी-उखड़ी बातें करना- अन्यमनस्क होना या उदासीन बातें करना।
- उन्नीस-बीस का अंतर होना- बहुत कम अंतर होना।
- उल्टी गंगा बहाना- विपरीत चलना।
- उड़ती चिड़िया के पर गिनना- रहस्य की बात दूर से जान लेना।
- इज़्ज़त ख़ाक में मिलना- परिवारिक प्रतिष्ठा को ठेस पहुँचना।
- ईद का चाँद होना- बहुत दिनों बाद दिखाई पड़ना।
- ईंट से ईंट बजाना- पूरी तरह से नष्ट करना।
- ईंट का जबाब पत्थर से देना- ज़बरदस्त बदला लेना; करारा जवाब देना।
- कान भरना- किसी के ख़िलाफ़ किसी के मन में कोई बात बैठाना।
- कूच करना- जाना; प्रस्थान करना; चले जाना।
- ख़ून पसीना एक करना- कड़ी मेहनत करना।
- घोड़े बेचकर सोना- हर ज़िम्मेदारी से मुक्त हो जाना; बिल्कुल निश्चिंत हो जाना; किसी प्रकार की चिन्ता न करना।
- घी के दिये जलाना- अत्यधिक प्रसन्न होना; खुशियाँ मनाना; प्रसन्नता ज़ाहिर करना।
- चार चाँद लगाना- किसी सुन्दर वस्तु को और सुन्दर बनाना; किसी कार्यक्रम की शोभा बढ़ाना; किसी को ज़्यादा मान-सम्मान देना।
- चैन की सांस लेना- काम निपटाकर निश्चिन्त होना; कार्य पूर्ण होने पर शान्ति महसूस करना।
- चोली-दामन का साथ होना- गहरी मित्रता होना; अत्यधिक घनिष्ठता होना; बहुत मधुर सम्बन्ध होना।
- चिकना घड़ा होना- बेशर्म होना; किसी बात का प्रभाव न पड़ना; अपमान होने पर भी अपमानित महसूस न करना; किसी की लिहाज़ न करना।
- चुल्लू भर पानी में डूबना- लज्जित होना; अपमानित होना।
- छक्के छुड़ाना- बुरी तरह हराना; अपने से बलवान पर विजय प्राप्त करना।
- छाती पर मूँग दलना- पास रहकर कष्ट देना।
- जान में जान आना- मुसीबत से निकलने पर निश्चिंत होना।
- जले/ घाव पर नमक छिड़कना- दुःखी को और अधिक दुःखी करना; किसी का काम खराब होने पर हंसी उड़ाना।
- दाहिना हाथ होना- बहुत बड़ा सहायक होना।
- दाँत खट्टे करना- प्रतिद्वंद्विता या लड़ाई में पछाड़ना।
- दुम हिलाना- दीनतापूर्वक प्रसन्नता प्रकट करना।
- नील का टीका लगाना- कलंक लगाना, कलंकित करना।
- सिर ओखली में देना- व्यर्थ ही जान-बूझकर जोख़िम में पड़ना।
- टोपी पहनाना- बेवकूफ़ बनाना; झाँसा देना।
- हवा में गाँठ लगाना- बड़े-बड़े दावे करना; असम्भव कार्य को करने का दम भरना।
- हाथ-खड़े कर देना- असमर्थता जताना; वक्त पर मदद से इन्कार करना।
- हाथ धोना- गँवा देना।
- हाथ पाँव मारना- प्रयास करना।
- पानी देना- सींचना, तर्पण करना।
- पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर- पास में रहकर ख़तरनाक व्यक्ति से दुश्मनी रखना।
- पासा पलटना- अच्छा से बुरा या बुरा से अच्छा भाग्य होना; भाग्य का अनुकूल से प्रतिकूल या प्रतिकूल से अनुकूल होना।
- पीठ दिखाना- कायरता दिखाना, भाग जाना, विमुख होना।
- पैर पसारना- फैलाना, आराम से लेटना।
- टोपी उछालना- अपमानित करना।
- ठगा-सा रह जाना- बहुत छोटा महसूस करना, अपमानित महसूस करना।
लोकोत्तियों की सूची
- अक्ल बड़ी या भैंस- शारीरिक शक्ति की अपेक्षा बुद्धि का महत्व अधिक होता है
- अक्ल के पीछे लट्ठ लिए फिरना- सदा मूर्खतापूर्ण बातें या काम करते रहना
- अधजल गगरी छलकत जाए- थोड़ा होने पर अधिक दिखावा करना
- अपना हाथ जगन्नाथ- स्वतंत्र व्यक्ति जिसके काम में कोई दखल न दें
- अपने पांव पर आप कुल्हाड़ी मारना- अपना अहित स्वयं करना
- अपनी अपनी डफली,अपना अपना राग- विचारो का बेमेल होना
- अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत- समय गुज़रने पर पछतावा करने से कोई लाभ नहीं होता
- अशर्फ़ियाँ लुटाकर कोयलों पर मोहर लगाना- मूल्यवान वस्तु भले ही जाए, पर तुच्छ चीज़ों को बचाना
- आसमान से गिरा खजूर में अटका- एक विपत्ति से निकलकर दूसरी में उलझना
- आप भला सो जग भला- स्वयं सही हो तो सारा संसार ठीक लगता है
- आगे कुआँ पीछे खाई- हर तरफ परेशानी होना; विपत्ति से बचाव का कोई मार्ग न होना
- आगे नाथ न पीछे पगहा- कोई भी जिम्मेदारी न होना; पूर्णत: बंधनरहित होना
- आए थे हरि भजन को ओटन लगे कपास- इच्छितकार्य न कर पाने पर कोई अन्य कार्य कर लेना
- आटे के साथ घुन भी पिसता है- अपराधी के साथ निरपराधी भी दण्ड पा जाता है
- अंधेर नगरी चौपट राजा, टके सेर भाजी टके सेर खाजा- जहाँ मुखिया ही मूर्ख हो, वहाँ अन्याय ही होता है
- अंधों में काना राजा- मूर्खों में थोड़ा सा ज्ञानी
- अंधी पीसे कुत्ता खाये- परिश्रमी व्यक्ति के असावधानी पर अन्य व्यक्ति का उपभोग करना
- आम के आम गुठलियों के दाम- दुहरा लाभ होना
- आँख का अँधा, नाम नैनसुख- गुण न होने पर भी गुण का दिखावा करना
- ओखली मे सिर दिया तो मूसल से क्या डर- कठिन कार्यो में उलझ कर विपत्तियों से क्या घबराना
- एक अनार सौ बीमार- समान कम चाहने वाले बहुत
- एक और एक ग्यारह- एकता मे शक्ति होती है
- एक पंथ दो काज- एक प्रयत्न से दोहरा लाभ
- एक तो चोरी ऊपर से सीनाज़ोरी- गलती करने पर भी उसे स्वीकार न करके विवाद करना
- एक हाथ से ताली नही बजती- झगड़ा एक ओर से नही होता
- एक तो करेला, दूजे नीम चढ़ा- अवगुणी में और अवगुणों का आ जाना
- एक म्यान में दो तलवार नहीं रह सकती- एक स्थान पर दो विचारधारायें नहीं रह सकतीं हैं
- उल्टा चोर कोतवाल को डांटे- अपना अपराध स्वीकार करने की बजाय पूछने वाले को दोष देना
- ऊँट के मुँह मे ज़ीरा- बड़ी आवश्यकता के लिये कम देना
- कहाँ राजा भोज, कहाँ गंगू तेली- दो असमान व्यक्तियों का मेल न होना
- कंगाली में आटा गीला- कमी में और नुकसान होना
- कहीं का ईंट, कहीं का रोड़ा, भानुमती ने कुनबा जोड़ा- इधर -उधर से उल्टे सीधे प्रमाण एकत्र कर अपनी बात सिद्ध करने का प्रयत्न करना
- कौवा चला हंस की चाल- अयोग्य व्यक्ति का योग्य व्यक्ति जैसा बनने का प्रयत्न
- खोदा पहाड़ निकली चुहिया- बहुत प्रयत्न करने पर कम फल प्राप्त होना
- खिसियानी बिल्ली खम्भा नोचे- दूसरे के क्रोध को अनुचित स्थान पर निकालना
- घर का भेदी लंका ढावे- आपस की फूट विनाश कर देती है
- घर की मुर्गी दाल बराबर- घर की वस्तु का महत्व नहीं होता
- घर में नहीं दाने, अम्मा चली भुनाने- झूठी शान दिखाना
- चमड़ी जाए पर दमड़ी न जाए- अत्यधिक कंजूस होना
- चार दिन की चांदनी फिर अंधेरी रात- सुख क्षणिक होता है
- चोर की दाढ़ी में तिनका- अपराध बोध से व्यक्ति सहमा-सहमा रहता है; दोषी व्यक्ति का व्यवहार उसकी असलियत उजागर कर देता है
- चिराग़ तले अन्धेरा होना- देने वाले का स्वयं वंचित रहना; सबका काम कराने वाले का स्वयं का काम लटका रहना; सुविधा प्रदान करने वाले को स्वयं सुविधा न मिलना
- छ्छूंदर के सिर पर चमेली का तेल- अयोग्य व्यक्ति को अच्छी चीज़ देना
- छाती पर सांप लोटना- ईर्ष्या होना
- छोटा मुँह बड़ी बात- अपनी योग्यता से बढ़कर बात करना
- छक्के छूटना- बुद्धि चकरा जाना
- जाके पाँव व फटी बिबाई, सो क्या जाने पीर पराई- जिसने कभी दु:ख न देखा हो वह दूसरेरे के दु:ख को नहीं समझ सकता
- जिसकी लाठी उस की भैंस- शक्तिशाली विजयी होता है
- जिसकी उतर गई लोई उसका क्या करेगा कोई- निर्लज्ज को किसी की परवाह नहीं होती
- झूठ के पांव नहीं होते- झूठ ज़्यादा दिन तक नहीं ठहरता है
- ढाक के वही तीन पात- परिणाम कुछ नहीं, बात वहीं की वहीं
- डूबते हुए को तिनके का सहारा- घोर संकट मे जरा सी सहायता ही काफी होती है
- थोथा चना बाजे घना- ओछा आदमी ज्यादा डींग हाँकता है
- दान की बछिया के दाँत नहीं देखे जाते- मुफ्त की वस्तु का अच्छा बुरा नहीं देखा जाता
- दुविधा में दोनों गये माया मिली न राम- दुविधाग्रस्त व्यक्ति को कुछ भी प्राप्त नही होता
- दूध का दूध ,पानी का पानी- उचित न्याय ,विवेकपूर्ण न्याय
- धोबी का कुत्ता न घर का न घाट का- अस्थिर व्यक्ति प्रभावहीन होता है
- नहले पर दहला- एक से बढ़कर एक
- न रहेगा बांस न बजेगी बाँसुरी- झगड़े को समूल नष्ट करना
- न नौ मन तेल होगा न राधा नाचेगी- कार्य न करने हेतु असम्भव शर्ते रखना
- नाच न जाने आँगन टेढ़ा- खुद न जानने पर बहाने बनाना
- नौ सौ चूहे खाय बिल्ली हज को चली ढोंगी व्यक्ति- जीवन भर पाप करने के बाद बुढ़ापे मे धर्मात्मा होने का ढोंग करना
- पगड़ी उछालना- अपमानित करना
- पढ़े फारसी बेचे तेल, यह देखे कुदरत का खेल- भाग्यवश योग्य व्यक्ति द्वारा तुच्छ कार्य करने के लिये विवश होना
- बगल में छोरा, शहर में ढिंढोरा- वाँछित वस्तु की प्राप्ति के लिये अपने आस -पास नजर न डालना
- बड़े मियाँ सो बड़े मियाँ, छोटे मियाँ सुभानअल्लाह- छोटे का बड़े से भी अधिक चालाक होना
- बंदर क्या जाने अदरक का स्वाद- किसी के गुणों को न जान कर उसके महत्व को न समझ सकना
- बिन माँगे मोती मिले,माँगे मिले न भीख- माँगने पर कुछ नहीं मिलता है
- भागते चोर/भूत के लँगोटी ही सही- कुछ न मिलने पर जो भी मिला वही अच्छा
- भैंस के आगे बीन बजाना- मूर्ख के सामने ज्ञान की बातें करना व्यर्थ है
- मान न मान मैं तेरा मेहमान- व्यर्थ मे गले पड़ना
- मुख मे राम बगल में छुरी- ऊपर से भला बनकर धोखा देना
- ये मुंह और मसूर की दाल- अपनी औक़ात से बाहर की बात होना
- सौ सुनार की एक लुहार की- सामान्य व्यक्ति की अपेक्षा बुद्धिमान व्यक्तिकम प्रयत्न मे लाभ पा लेता है
- हाथ कंगन को आरसी क्या, पढ़े लिखे को फारसी क्या- प्रत्यक्ष को प्रमाण की आवश्यकता नहीं होती
- हाथ पसारना/फैलाना- किसी से विवशतापूर्ण माँगना
- हाथ –पाँव फूल जाना- डर से घबराना
- होनहार बिरवान के होत चीकने पात- प्रतिभा बचपन से दिखाई देती है
मुहावरों का वाक्य में प्रयोग
- कलम तोड़ना ( बहुत सुंदर लिखना) – जयशंकर प्रसाद ने कामयानी लिखने में कलम तोड़ दी।
- अपना उल्लू सीधा करना ( अपना स्वार्थ सिद्ध करना)- आजकल सभी लोग अपना उल्लू सीधा करने में लगे हुए हैं।
- नौ दो ग्यारह हो जाना ( भाग जाना)- पुलिस को देखकर चोर नौ दो ग्यारह हो गए।
- अक्ल का दुश्मन होना ( मूर्ख होना)- मोहन ऐसे काम करता है की उसे अक्ल का दुश्मन कहना गलत नहीं होगा।
- पगड़ी उछालना ( बेइज्जती करना)- उसने सभी के सामने अपने भाई की पगड़ी उछाल दी।
लोकोक्तियों का वाक्य में प्रयोग
- अंधा क्या चाहे, दो आँखें: (आवश्यक या अभीष्ट वस्तु का मिल जाना)- मैं आज ऑफिस से छुट्टी लेने की सोच रहा था तभी बॉस का कॉल आया और बोले के आज वो बाहर जा रहे है, इसलिए ऑफिस का ऑफ है। यह तो अंधा क्या चाहे दो आँखें वाली बात हो गई।
- अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा: (जहाँ मालिक मूर्ख होता है, वहाँ गुण का आदर नहीं होता) – एक कंपनी का मालिक मूर्ख था तथा वहाँ के कर्मचारी गुणवान, लेकिन फिर भी उनके गुणों का आदर नहीं होता था। इसे कहते हैं अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा।
- अंधों में काना राजा : (मूर्खों या अज्ञानियों में अल्पज्ञ लोगों का भी बहुत आदर होता है।) – टेस्ट में जहाँ सभी के जीरो नंबर आए वहाँ राम दो नंबर से प्रथम आ गया। इसे कहते हैं अंधों में काना राजा।
- अंत भला तो सब भला : (परिणाम अच्छा हो जाए तो सब कुछ माना जाता है।) – सुधा का बेटा लड़कर घर से निकल गया था लेकिन अब वह वापिस आ गया और सुधा ने उसे माफ कर दिया और कहने लगी की अंत भला तो सब भला।
- अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता:(अकेला आदमी कोई बड़ा काम नहीं कर सकता) – पत्थर को तोड़ने के लिए हम सभी को साथ काम करना पड़ेगा क्योंकि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता है।