ISRO Full Form: 1969 में, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) की स्थापना एक स्पष्ट मिशन के साथ की गई थी, जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय विकास के लाभ के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी को आगे बढ़ाना और साथ ही ग्रहों की खोज करना और अंतरिक्ष विज्ञान अनुसंधान करना था। इस दृष्टिकोण का उद्देश्य राष्ट्र के विकास के लिए अंतरिक्ष अन्वेषण का उपयोग करना और अंतरिक्ष विज्ञान और ग्रह अन्वेषण के क्षेत्र में गहराई से जाना था।
पिछले कुछ वर्षों में, इसरो ने लगातार अपनी असाधारण और लागत प्रभावी प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन किया है, जिससे दुनिया की अग्रणी अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच अपनी जगह बनाई है। इसरो के सभी प्रक्षेपण चेन्नई के पास श्रीहरिकोटा द्वीप पर स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र में आयोजित किए जाते हैं। चंद्रयान-3 की सफल लैंडिंग के साथ इसरो ने एक बार फिर अपनी क्षमताओं का प्रदर्शन किया और अंतरिक्ष अन्वेषण के क्षेत्र में अपनी वैश्विक स्थिति को मजबूत किया।
इसरो का इतिहास (History Of ISRO)
- इसरो पहले भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति (INCOSPAR) थी, जिसे 1962 में भारत सरकार द्वारा स्थापित किया गया था, जैसा कि डॉ. विक्रम ए साराभाई ने कल्पना की थी। इसरो का गठन 15 अगस्त 1969 को हुआ था और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी के दोहन में विस्तारित भूमिका के साथ INCOSPAR को हटा दिया गया था।
- अंतरिक्ष विभाग (DoS) की स्थापना की गई और 1972 में इसरो को DOS के अंतर्गत लाया गया।
- पहला भारतीय उपग्रह आर्यभट्ट था। इसे इसरो द्वारा बनाया गया था और 19 अप्रैल, 1975 को सोवियत संघ की मदद से लॉन्च किया गया था।
इसरो का उद्देश्य (Objectives Of ISRO):
इसरो का मुख्य उद्देश्य विभिन्न राष्ट्रीय कार्यों के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी और इसके अनुप्रयोग का उपयोग करना है। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम विक्रम साराभाई की दृष्टि से प्रेरित था, जिन्हें भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का जनक माना जाता है।
- उपग्रह के माध्यम से जन संचार और शिक्षा।
- इसरो अक्सर दूरसंवेदी प्रौद्योगिकी, पर्यावरण निगरानी और मौसम संबंधी पूर्वानुमान के माध्यम से प्राकृतिक संसाधनों का नियंत्रण और प्रबंधन करता है।
- स्वदेशी उपग्रहों और उपग्रह प्रक्षेपण यान का विकास।
इसरो के ऑपरेशन सेंटर (Operation Centers of ISRO)
ISRO कई केंद्रों के एक क्षेत्रीय नेटवर्क के माध्यम से काम करता है, जिसे इसरो के ऑपरेशन सेंटर के रूप में जाना जाता हैं। इसरो के ऑपरेशन सेंटर की जानकारी नीचे दी गयी हैं।
- विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, तिरुवनंतपुरम में स्थित है। लॉन्च यान(Launch vehicles) को तिरुवनंतपुरम के विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र में बनाया जाता हैं।
- तरल नोदन प्रणाली केंद्र, तिरुवनंतपुरम और बेंगलुरु में स्थित है।
- भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला, अहमदाबाद में स्थित है।
- राष्ट्रीय वायुमंडलीय अनुसंधान प्रयोगशाला, तिरूपति में स्थित है।
- अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, अहमदाबाद में स्थित है।
- उत्तर-पूर्वी अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र, शिलांग में स्थित है।
- आठ सफल अंतरिक्ष यान परियोजनाओं का स्थल, यू. आर. राव सैटेलाइट सेंटर, बैंगलोर में स्थित है। उपग्रहों(Satellites) का बैंगलोर के यू आर राव उपग्रह केंद्र(U R Rao Satellite Center) या इसरो केंद्र में डिज़ाइन और निर्माण और परीक्षण किया जाता है।
- सभी सेंसर और पेलोड अहमदाबाद अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र(Ahmedabad Space Applications Centre) में बनाए जाते हैं।
- सभी उपग्रहों के लिए एल्टीट्यूड सेंसर के विकास के लिए जिम्मेदार इलेक्ट्रो-ऑप्टिक्स सिस्टम प्रयोगशाला भी बैंगलोर में स्थित है।
- सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र भारत के उपग्रहों के लिए एक प्रक्षेपण स्थल के रूप में कार्य करता है और यह भारत का मुख्य प्रक्षेपण आधार भी है, जो श्रीहरिकोटा में स्थित है।
- साउंडिंग रॉकेट लॉन्च करने के लिए इस्तेमाल किया जाने वाला थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन तिरुवनंतपुरम में स्थित है।
- हासाना और भोपाल में भूस्थिर उपग्रह स्टेशनों के लिए मास्टर नियंत्रण सुविधाएं उपलब्ध हैं।
- रिमोट सेंसिंग डेटा एकत्र करने और संग्रहीत करने की सुविधाएं हैदराबाद राष्ट्रीय रिमोट सेंसिंग सेंटर में स्थित हैं।
- इसरो की वाणिज्यिक शाखा एंट्रिक्स कॉर्पोरेशन(Antrix Corporation) है, जिसका मुख्यालय बैंगलोर में है।
ISRO के अब तक के चेयरमैन की लिस्ट
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के अब तक के चेयरमैन की सूची निम्नलिखित है:
ISRO के अध्यक्षों की लिस्ट | |
ISRO अध्यक्ष | कार्यकाल |
डॉ विक्रम साराभाई | 1963 – 1971 |
प्रो. एम.जी. के. मेनन | 1972 – 1972 |
प्रो. सतीश धवन | 1972 – 1984 |
प्रो. यू.आर. राव | 1984 – 1994 |
डॉ. के. कस्तूरीरंगन | 1994 – 2003 |
जी. माधवन नायर | 2003 – 2009 |
डॉ. के. राधाकृष्णन | 2009 – 2014 |
डॉ. शैलेश नायक | 2015 – 2015 |
ए. एस. किरण कुमार | 2015 – 2018 |
डॉ. के. सिवान | 2018 – 2022 |
एस. सोमनाथ | 12 Jan 2022 – वर्तमान |
इसरो की उपलब्धियां (Achievements Of ISRO)
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन अपनी अंतरिक्ष शक्ति और नवाचार का प्रदर्शन करके हमारे देश को कई गौरवपूर्ण क्षण दे रहा है। पिछले कुछ वर्षों में इसरो की उपलब्धियों ने अन्य सरकारी एजेंसियों के लिए भी उत्कृष्टता के मानक तैयार किए हैं। आइए पिछले कुछ वर्षों में इसरो की कुछ उपलब्धियों पर नजर डालें।
- वर्ष 1980 में रोहिणी का प्रक्षेपण किया गया, यह पहला उपग्रह था जिसे एसएलवी-3 द्वारा कक्षा में सफलतापूर्वक स्थापित किया गया था, जो एक भारतीय निर्मित प्रक्षेपण यान था। इसरो ने बार-बार साबित किया है कि वह ‘राष्ट्रीय विकास के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी का उपयोग’ करने के दृष्टिकोण पर पूरी तरह कायम है।
- 20 मई 1992 को, इसरो ने एक संवर्धित उपग्रह प्रक्षेपण यान (एएसएलवी) और इनसैट – 2ए लॉन्च किया। भारत के पूर्व राष्ट्रपति और मिसाइल वैज्ञानिक स्वर्गीय ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने इसरो में एसएलवी-3 परियोजना का नेतृत्व किया और बाद में भारत के मिसाइल कार्यक्रम को निर्देशित करने के लिए डीआरडीओ में चले गए।
- 1993 में ध्रुवीय उपग्रह प्रक्षेपण यान (पीएसएलवी) की पहली उड़ान का समय आ गया था। पहला प्रक्षेपण असफल रहा। पहला सफल प्रक्षेपण 1994 में हुआ था, और तब से, पीएसएलवी वर्कहॉर्स लॉन्च वाहन बन गया है – रिमोट सेंसिंग और संचार उपग्रहों दोनों को कक्षा में स्थापित करना, दुनिया में सबसे बड़ा क्लस्टर बनाना और भारतीय उद्योग और कृषि को अद्वितीय डेटा प्रदान करना।
- वर्तमान में प्रचालन में सबसे शक्तिशाली भारतीय प्रक्षेपण यान; जीएसएलवी की पहली विकास उड़ान 2001 में हुई थी। बार-बार पेलोड में कटौती और देरी के कारण कार्यक्रम के लाभों की जांच की गई है। जीएसएलवी के ऊपरी चरण के लिए स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का परीक्षण 2007 में किया गया था।
- इसरो ने 2000-2010 दशक की जरूरतों के लिए जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (जीएसएलवी) की प्रभावशीलता पर पुनर्विचार किया है और एक स्वदेशी और नए भारी लॉन्च वाहन, जीएसएलवी III का विकास शुरू किया है। उत्तरार्द्ध जीएसएलवी-I/II से संबंधित नहीं है और तरल मुख्य चरणों और दो ठोस स्ट्रैप-ऑन बूस्टर के सिद्ध प्रारूप पर आधारित होगा। यह एरियन 5 और अन्य आधुनिक लांचरों जैसा होगा और इसमें मानवयुक्त अंतरिक्ष उड़ान के लिए पर्याप्त पेलोड क्षमता होगी। उद्घाटन उड़ान 2008 के लिए निर्धारित है।
- चंद्रयान 2008: इसरो का इरादा संशोधित पीएसएलवी पर स्थापित एक छोटे रोबोटिक अंतरिक्ष यान को चंद्रमा की कक्षा में भेजने का है। यह चंद्रमा की सतह का पहले से कहीं अधिक विस्तार से सर्वेक्षण करेगा और संसाधनों का पता लगाने का प्रयास करेगा। संयुक्त राज्य अमेरिका सहित देशों ने मिशन में अपने स्वयं के पेलोड संलग्न करने में रुचि व्यक्त की है। इसरो और नासा के बीच दो नासा जांचों को पेलोड के रूप में ले जाने के लिए एक समझौता हुआ है।
- इसरो ने दिसंबर 2014 में GSLV-MK3 लॉन्च किया था, जिसमें भारत निर्मित क्रू कैप्सूल है। यह तीन अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरिक्ष में ले जा सकता है। इसरो के मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन, गगनयान की 2021 में पहली परीक्षण उड़ान की योजना है।
- वर्ष 2014 में इसरो भारत अपने पहले ही प्रयास में सफलतापूर्वक मंगल ग्रह पर पहुंचने वाला पहला देश बन गया। मार्स ऑर्बिटर मिशन या MOM का बजट मात्र रु. 450 करोड़.
- वर्ष 2014 में इसरो भारत अपने पहले ही प्रयास में सफलतापूर्वक मंगल ग्रह पर पहुंचने वाला पहला देश बन गया। मार्स ऑर्बिटर मिशन या MOM का बजट मात्र रु. 450 करोड़.
- इसरो द्वारा लॉन्च किया गया, INSAT बहुउद्देशीय भूस्थैतिक उपग्रहों की एक श्रृंखला है। यह दूरसंचार, प्रसारण, मौसम विज्ञान और बचाव कार्यों में मदद करता है।
- साल 2017 में इसरो ने एक ही मिशन में 104 सैटेलाइट लॉन्च कर वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया था.
- 2019 में लॉन्च किए गए चंद्रयान -2 में एक ऑर्बिटर, एक लैंडर (विक्रम) और एक रोवर (प्रज्ञान) शामिल था। हालांकि लैंडर ने सफल सॉफ्ट लैंडिंग नहीं की, लेकिन ऑर्बिटर बहुमूल्य डेटा प्रदान करना जारी रखता है।
- चंद्रयान-3: 23 अगस्त, 2023 को इसरो ने चंद्रयान-3 को चंद्रमा की सतह पर सफलतापूर्वक उतारकर एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की, जिससे भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव तक पहुंचने में अग्रणी बन गया।इसरो भारत की अंतरिक्ष क्षमताओं को और अधिक विस्तारित करने के लिए विभिन्न अंतरिक्ष मिशनों, उपग्रह प्रक्षेपणों और अनुसंधान परियोजनाओं पर काम करना जारी रखता है। यह अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष एजेंसियों और संगठनों के साथ सहयोग करता है, वैश्विक अंतरिक्ष अनुसंधान और अन्वेषण में योगदान देता है।