भूपर्पटी पर ठोस पिण्ड के रूप में प्रकट होने (दिखाई देने) वाले प्राकृतिक निक्षेप को “चट्टान” कहा जाता है। इनका निर्माण दो प्रमुख कारणों से होता है – पृथ्वी की आंतरिक शक्तियों के कारण और आदि चट्टानों के रूपांतरण या विखंडन से पुनः जम जाने के कारण।चट्टानें भूमि की निर्माण-बिगड़न की प्रक्रियाओं को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, और पृथ्वी की आंतरिक संरचना और विकास की समझ में सहायक होती हैं।
पृथ्वी के विभिन्न भूवैज्ञानिक कालों में निर्मित चट्टानें विविधतापूर्णता को दर्शाती हैं, जिसमें भारत की भूवैज्ञानिक संरचना उत्कृष्ट है। चट्टानों की यह विविधता भारत में विभिन्न प्रकार के खनिजों के उत्पादन का कारण बनती है। भूवैज्ञानिक इतिहास के आधार पर, भारत में पायी जाने वाली चट्टानें विभिन्न कालों में उत्पन्न हुई हैं।
चट्टानों के प्रकार
उत्पत्ति एवं स्वरूप के अनुसार चट्टानों को तीन समूहों में बाँटा जा सकता है-
- आग्नेय चट्टानें (Igneous Rocks)
- अवसादी चट्टानें (Sedimentary Rocks)
- रूपांतरित चट्टानें (Metamorphic Rocks)
आग्नेय चट्टान (Igneous Rocks)
आग्नेय चट्टानों का निर्माण क्रस्ट के नीचे मौजूद गर्म एवं तरल मैग्मा के ठंडा होने से होता है। आग्नेय चट्टान रवेदार होती हैं। इन्हें प्राथमिक चट्टान भी कहते हैं, क्योंकि पृथ्वी की उत्पत्ति के पश्चात सबसे पहले इनका ही निर्माण हुआ था। अवसादी व रूपान्तरित चट्टान भी इन्ही से निर्मित हैं। इनमें परतें तथा जीवावशेष (Fossils) नहीं पाए जाते हैं।
आग्नेय चट्टान के प्रकार
आग्नेय चट्टान निम्नलिखित दो प्रकार की होती हैं:
- प्लूटोनिक चट्टानें या (आंतरिक आग्नेय चट्टानें)
- ज्वालामुखीय चट्टानें या (बाह्य आग्नेय चट्टानें)
- आंतरिक आग्नेय चट्टानें (Intrusive igneous rock): ये चट्टानें पृथ्वी की सतह के नीचे क्रिस्टलीकृत हो जाती हैं जिसके परिणामस्वरूप धीरे-धीरे ठंडा होने पर बड़े क्रिस्टल बनते हैं। डायराइट, ग्रेनाइट और पेगमाटाइट अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानों के उदाहरण हैं।
- बाह्य आग्नेय चट्टानें (Extrusive igneous rock): ये चट्टानें सतह पर फूटती हैं जिसके परिणामस्वरूप छोटे क्रिस्टल बनते हैं क्योंकि शीतलन तेजी से होता है। कुछ चट्टानों की शीतलन दर इतनी तेज़ होती है कि वे एक अनाकार कांच का रूप ले लेती हैं। बेसाल्ट, टफ और प्यूमिस बहिर्वेधी आग्नेय चट्टान के उदाहरण हैं।
आग्नेय चट्टानों की विशेषताएं
आग्नेय चट्टानें कठोर, रवेदार, परतहीन तथा जीवावशेष रहित होती हैं। पानी का प्रवेश कम होने से इनमें रासायनिक अपक्षय की क्रिया बहुत ही कम होती है। इन चट्टानों में संधियां पायी जाती हैं। इनका वितरण ज्वालामुखी क्षेत्रों में अधिक होता है।
अवसादी चट्टानें (Sedimentary Rocks)
पृथ्वी तल पर आग्नेय व रूपान्तरित चट्टानों के अपरदन व निक्षेपण के फलस्वरूप निर्मित चट्टानों को अवसादी चट्टानें कहते हैं। इन पुनर्निर्मित चट्टानों में परतों का विकास होने के कारण इन्हें प्रस्तरित या परतदार चट्टान भी कहा जाता है। इनके निर्माण में जैविक अवशेषों का भी योगदान होता है।सम्पूर्ण क्रस्ट के लगभग 75% भाग पर अवसादी चट्टानें विस्तृत हैं, परन्तु क्रस्ट के निर्माण में इसका योगदान मात्र 5% है।
अवसादी चट्टान के प्रकार
अवसादी चट्टान के तीन प्रकार (Types of Sedimentary Rocks in Hindi) निम्नलिखित हैं:
- क्लैस्टिक अवसादी चट्टानें (Clastic sedimentary rocks): ये चट्टानें यांत्रिक अपक्षय मलबे से बनती हैं। बलुआ पत्थर और सिल्टस्टोन खंडित अवसादी चट्टानों के उदाहरण हैं।
- रासायनिक अवसादी चट्टानें (Chemical sedimentary rocks): ये चट्टानें विलयन से अवक्षेपित होने वाले विघटित पदार्थों से बनती हैं। लौह अयस्क और चूना पत्थर रासायनिक अवसादी चट्टानों के उदाहरण हैं।
- कार्बनिक अवसादी चट्टानें (Organic sedimentary rocks): ये चट्टानें पौधों और जानवरों के मलबे के जमा होने से बनती हैं। कोयला और कुछ डोलोमाइट कार्बनिक अवसादी चट्टानों के उदाहरण हैं।
अवसादी चट्टानों की विशेषताएं
भूपृष्ठ के 75 प्रतिशत भाग में विस्तृत अवसादी चट्टानें परतदार, संधियुक्त तथा जीवावशेषों से परिपूर्ण होती है। ये संगठित, असंगठित या ढीली किसी भी प्रकार की हो सकती हैं। इनमें अपरदन का प्रभाव शीघ्र होता है।
रूपान्तरित चट्टानें (Metamorphic Rocks)
जब ताप एवं दबाव के कारण आग्नेय तथा अवसादी चट्टानों के संगठन तथा स्वरूप में परिवर्तन या रूपान्तरण हो जाता है। तब रूपान्तरित चट्टानों का निर्माण होता है। ये चट्टानें सर्वाधिक कठोर एवं जीवाश्म रहित होती है।
रूपांतरित चट्टान के प्रकार
निम्नलिखित दो प्रकार की कायांतरित चट्टानें हैं:
- पत्तेदार रूपांतरित चट्टानें (Foliated metamorphic rocks): ये चट्टानें गर्मी और दबाव के संपर्क में आने से निर्मित होती हैं जिससे वे परतदार दिखाई देती हैं। फ़िलाइट और नीस पत्तेदार रूपांतरित चट्टानों के उदाहरण हैं।
- गैर-पर्णधारी रूपांतरित चट्टानें (Non-foliated metamorphic rocks): इन चट्टानों में परतें नहीं होती हैं। संगमरमर और क्वार्टजाइट गैर-पर्णधारी रूपांतरित चट्टानों के उदाहरण हैं।
रूपांतरित चट्टानों की विशेषताएं
इनमें ग्रेनाइट से नीस, चूना-पत्थर से संगमरमर तथा गेब्रो से सरपेन्टाइन का निर्माण होता है। इन चट्टानों में खनिज लगभग समानांतर पतों में व्यवस्थित होते हैं।
भारत में चट्टानों के प्रकार
भारत में चट्टानों का वर्गीकरण निम्नलिखित है:
- आर्कियन प्रणाली की चट्टानें: भारतीय भूभागों में स्थित सबसे प्राचीन चट्टान समूहों में से एक हैं जो पृथ्वी के ठंडा होने पर निर्मित हुईं थीं। इन चट्टानों का नाम आर्कियन क्रम के अनुसार है, और ये पृथ्वी के विभिन्न क्षेत्रों में स्थित हैं।आर्कियन प्रणाली की चट्टानें प्रमुखतः नीस, ग्रेनाइट, शिस्ट, मार्बल, क्वार्ट्ज, डोलोमाइट, फिलाइट, आदि से मिलती हैं। इन चट्टानों का विस्तार भारत के विभिन्न राज्यों में है, जैसे कि कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, ओड़ीशा, बिहार, और राजस्थान के दक्षिणी-पूर्वी भागों में। इन चट्टानों का क्षेत्रफल लगभग 1,87,500 वर्ग किलोमीटर है। यह भारत में पाया जाने वाला सबसे प्राचीन चट्टान समूह है, जो प्रायद्वीप के दो-तिहाई भाग में फैला हुआ है।
- धारवाड़ प्रणाली की चट्टानें:धारवाड़ प्रणाली की चट्टानें सबसे प्राचीन अवसादी चट्टाने है। अर्कियन क्रम की चट्टानों के बाद ये दूसरे स्थान पर आने वाली चट्टानें हैं। धारवाड चट्टानों को सबसे पहले कर्नाटका के धारवाड़ जिला में देखा गया था। इस कारण इनका नाम धारवाड़ पड़ा। यह चट्टाने अर्कियन चट्टाने के टूट-फूट होने से बनी है।अर्कियन चट्टानों का अवसाद इकट्ठा होता गया उससे धारवाड़ चट्टान बनी।
- कडप्पा तंत्र की चट्टानें: कडप्पा क्रम की चट्टानें तीसरी तरह की चट्टानें है, जिसका निर्माण धारवाड़ चट्टानों के टूट-फूट से हुआ है। इन चट्टानों में बलुआ पत्थर और लाल पत्थर पाया जाता है। यह चट्टाने पूरे भारत में राजस्थान में और आंध्र प्रदेश में मिलती है। कडप्पा क्रम की चट्टानें भारतीय भूभागों में एक महत्वपूर्ण समृद्धि भंडार का स्रोत हैं और इनका अध्ययन सैत्यकालीन सभ्यताओं से लेकर आधुनिक विज्ञान तक के क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है।
- विंध्यन प्रणाली की चट्टानें: कडप्पा चट्टानों के बाद विंध्यन चट्टानों का निर्माण हुआ। इसका नाम विंध्याचल के नाम पर रखा गया है। ये जल निक्षेपों से निर्मित परतदार चट्टानें हैं। यह सिद्ध हो चुका है कि तलछट केवल समुद्रों और नदियों की घाटियों में ही एकत्रित होती थी। चूंकि बलुआ पत्थर विंध्य की चट्टानों में पाया जाता है, इसलिए यह माना जा सकता है कि जिन तलछटों से इन चट्टानों का निर्माण हुआ, वे समुद्र के उथले पानी में ही एकत्र हुए थे।
- गोंडवाना प्रणाली की चट्टानें: इनका निर्माण घाटियों में अवसादों से हुआ है। कोयला इसका उदाहरण है और मुख्यतः मध्य प्रदेश में पाया जाता है।भारत का 98 प्रतिशत कोयला केवल इन्हीं चट्टानों में पाया जाता है। गोण्डवाना चट्टान से प्राप्त बलुआ पत्थर इमारतों के निर्माण के काम आता है। इसके अलावा चीका मिट्टी, लिग्नाइट कोयला, सीमेंट और रासायनिक उर्वरक आदि कई खनिज पदार्थ इन चट्टानों से प्राप्त होते हैं।
- डेक्कन ट्रैप की चट्टानें: इनका निर्माण ज्वालामुखी विस्फोट से हुआ है। डोलराइट और बेसाल्ट इसके उदाहरण हैं और मुख्य रूप से महाराष्ट्र और गुजरात, तमिलनाडु और मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में पाए जाते हैं।
- तृतीयक प्रणाली की चट्टानें: ये चट्टानें मुख्यतः हिमालयी क्षेत्रों में पाई जाती हैं।
- चतुर्धातुक प्रणाली की चट्टानें: ये चट्टानें सिंधु और गंगा के मैदानी इलाकों में पाई जाती हैं।