‘जनजाति’, लोगों का एक समूह होता है , जो समान वंशावली और संस्कृति को साझा करते हैं। भारत की जनजातियां देश के लगभग सभी राज्यों में फैली हुई है। अलग- अलग राज्यों में इनके रीति-रिवाज और रहन सहन भी एकदम अलग देखने को मिलते हैं। जनजातियां, भारतीय आबादी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। जनजातीय संस्कृति भारत की अमूर्त राष्ट्रीय विरासत का एक अभिन्न अंग है।
भारतीय संविधान में विभिन्न पिछड़ी जातियों को ‘अनुसूचित जनजाति’ कहते हैं। इसके अलावा यह जनजातियाँ विभिन्न नामों से जानी जाती है, जैसे- आदिवासी, असभ्य जाति, वनवासी, कबीलाई समुदाय, आदिम जाति इत्यादि।
भारत की जनजातियाँ Tribes of India in Hindi
1. द्रविड़ियन या द्रविड
भारत सहित पूरे दुनिया की सबसे पुरानी जनजातियों में द्रविड़ अथवा द्रविडियन जनजाति का समावेश होता है। आज भी द्रविड़ जनजाति के वंशज भारत के कुछ राज्यों में निवास करते हैं। तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश के कई भागों में आज भी द्रविड़ियन प्रजाति पायी जाती है।
2. भारतीय आर्य
प्राचीन समय में भारतीय आर्य के कारण पूरे हिंदुस्तान को ‘आर्यव्रत’ के नाम से जाना जाता था। मूल रूप से इनका निवास पहले के समय में राजस्थान, पंजाब, जम्मू- कश्मीर, उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों में माना जाता है।
3. मंगोलायड
भारत की अति प्राचीन जनजातियों में मंगोलायड समुदाय भी है। शारीरिक संरचना के मुताबिक मंगोलायड कद में थोड़े छोटे होते थे। इनकी आंखों की संरचना छोटी और लंबी होती थी। वर्तमान में असम, हिमाचल प्रदेश और नेपाल के कई क्षेत्रों में मंगोलायड जनजाति का निवास स्थान है।
4. आर्य द्रविड़ियन
आर्य द्रविडियन यह द्रविड़ तथा आर्य के मिश्रण से बनी प्रजाति मानी जाती है। बिहार, उत्तर प्रदेश और राजस्थान जैसे कई राज्यों में आर्य द्रविडियन प्रजाति का निवास माना जाता है। इस प्रजाति की भौगोलिक स्थिति आर्य और द्रविड़ दोनों के ही समान मानी जाती थी।
5. मंगोल द्रविड़ियन
मंगोलियाई और द्रविडियन जनजाति के मिश्रण से उपजी मंगोल द्रविडियन प्रजाति भारत की अति प्राचीन प्रजातियों में से एक मानी जाती है। इनका मुख्य निवास स्थान उड़ीसा, पश्चिम बंगाल जैसे पूर्वी राज्यों की तरह कई अन्य राज्य में भी माना जाता है।
6. सिधो-द्रविड़ियन
मध्य प्रदेश, सौराष्ट्र, गुजरात, केरल और कच्छ इत्यादि के पहाड़ी इलाकों में सिधो-द्रविड़ियन प्रजाति निवास करती है। आज भी पाकिस्तान के बलूचिस्तान और सिंध प्रांत में सिधो-द्रविड़ियन की जनजातियाँ देखी गई है। मुख्य रूप से यह प्रजातियां दुर्गम पहाड़ी क्षेत्रों में निवास करती हैं।
7. तुर्क-ईरानी
तुर्क-ईरानी प्रजाति भी भारत की प्राचीनतम जनजातियों में से एक मानी जाती है। यह जातियां ईरान और तुर्की की मिश्रित प्रजातियां है, जो बड़ी मात्रा में बलूचिस्तान और अफगानिस्तान के कई प्रांतों में निवास करती हैं।
भारत की जनजातियों का वर्गीकरण Classification of Tribes of India in Hindi
1. भारतीय जनजातियों के भौगोलिक वितरण
– उत्तरी क्षेत्र (North Zone)
भौगोलिक वितरण के आधार पर उत्तरी क्षेत्र में पाए जाने वाली जनजातियाँ जौनसारी, भोटिया, कनौटा, थारू, बुक्सा इत्यादि नाम से जानी जाती है। हिमालय के तराई क्षेत्र से लेकर उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और बिहार जैसे पूर्वोत्तर राज्यों में ये जनजातियाँ निवास करती हैं। उत्तरी क्षेत्र में निवास करने वाली यह जनजातियाँ सामान्यतः मंगोल प्रजातियों की भांति होती है।
– मध्य क्षेत्र (Central Zone)
भारत में अधिकतर पहाड़ी क्षेत्र एवं पठार क्षेत्र वाले दुर्गम इलाकों में विभिन्न प्रजातियां पाई जाती है। मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, झारखंड, गुजरात, ओडिशा और राजस्थान के दक्षिणी भाग में मध्य क्षेत्र की जनजातियाँ निवास करती हैं। इनमें कोली, कोल, भील, गोंड, मीणा, उरांव, रेड्डी, मुंडा, बंजारा, कोरवा, संथाल इत्यादि जनजातियाँ मध्य क्षेत्र में रहती हैं।
– दक्षिणी क्षेत्र (Southern Zone)
भारत के दक्षिणी क्षेत्र में निवास करने वाले अमूमन जनजातियों की मूल भाषा द्रविड़ मानी जाती है। कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु इत्यादि जैसे दक्षिणी राज्यों में यह जनजातियाँ फैली हुई है, जिनमे ईरुला, कडार, टोडा, भील, गोंड, कोरमा इत्यादि का समावेश होता है। इसके अलावा नीग्रिटो जनजाति से ताल्लुक रखने वाले अल्लार, नायक चेट्टी, कुरुम्बा, चेचूं, पनियड और कादर इत्यादि जनजातियाँ भी आती है।
– पश्चिमी भाग (Western Zone)
सामान्य तौर पर पश्चिमी भाग में आने वाली अधिकतर प्रजातियां ऑस्ट्रिक भाषा बोलती है। मूलतः यह प्रोटो ऑस्ट्रेलायड जनजातियों के समान होती हैं। पश्चिमी भाग में गुजरात, राजस्थान, पश्चिमी महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश इत्यादि क्षेत्रों में पाई जाने वाली जनजातियाँ मीणा, भील, गरासिया, कोली, डस्ला, बंजारा, बाली, महादेव, सहरिया, सांसी इसके अंतर्गत आती हैं।
– पूर्वी क्षेत्र (Eastern Zone)
भारतीय पूर्व क्षेत्र के अंतर्गत आने वाली विभिन्न जनजातियाँ भी प्रोटो ऑस्टेलायड प्रजाति का ही एक हिस्सा मानी जाती है। ऑस्ट्रिक भाषा बोलने वाले इन लोगों की शारीरिक संरचना के आधार पर यह कद में छोटे और सांवले रंग के होते हैं।
घुंघराले बाल वाले पूर्वी क्षेत्र की प्रजातियां के बाल घुंघराले तथा ये लंबे सिर वाले होते है। आमतौर पर उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, झारखंड और बिहार जैसे राज्य में पाई जाने वाली प्रजातियों के अंतर्गत बिरहोर, संथाल, जुआंग, मुंडा, खरिया, हो, भूमिज, उरांव, खोंड इत्यादि जनजाति सम्मिलित हैं।
– पूर्वोत्तर क्षेत्र (Northeastern Zone)
पूर्वोत्तर क्षेत्र में आने वाले मेघालय, असम, मणिपुर, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, मिजोरम और नागालैंड जैसे राज्यों के अंतर्गत पूर्वोत्तर क्षेत्रीय प्रजातियां पाई जाती हैं। पूर्वोत्तर क्षेत्र में आने वाली तमाम जनजातियों के लक्षण मंगोलॉयड प्रजाति के समान ही होते हैं। विभिन्न समुदायों के लोग गुजारा करने के लिए व्यापार करते हैं, इसके अंतर्गत शिकार, कृषि, खाद्य संग्रह और सिलाई बुनाई करके जीविका चलाते हैं।
पूर्वोत्तर क्षेत्रों में पाई जाने वाली जनजातियों में गारो, खांसी, नागा, लेपचा, मिरी, मिश्मी एवं डफला, आपतानी, कुकी, हैमर, लुशाई, मोनपास इत्यादि अंतर्गत आती हैं।
– द्वीपीय क्षेत्र (Island Zone)
द्वीपीय क्षेत्र में आने वाली जनजातियाँ आमतौर पर अंडमान और निकोबार में निवास करती है। सामान्य तौर पर द्वीपीय क्षेत्र की जनजातियों का संबंध नीग्रिटो जाति से जोड़ा जाता है। इस समुदाय के लोग शिकार, मछली पालन, कृषि इत्यादि से अपना जीवन यापन करते हैं। जारवा, सेंटिनलीज, शोम्पेन, ओंग इत्यादि द्वीपीय क्षेत्रीय जनजातियाँ है।
2. भारतीय जनजातियों का भाषा के आधार पर वितरण
– द्रविड़ भाषा परिवार (Dravidian Speech Family)
द्रविड़ भाषा परिवार की मूलतः भाषा तमिल, तेलुगू, कन्नड़ और मलयालम है। कहा जाता है कि यह भाषाएं संस्कृत से भी प्राचीन है। विश्व में सबसे कठिन माने जाने वाली भाषाओं में दक्षिण भारत की भाषा पद्धतियां भी सम्मिलित है।
कई शिक्षाविदों का मानना है कि पृथ्वी की सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक द्रविडियन के अंतर्गत आने वाली भाषाएं हैं। मालेर, कादर, साओरा व इरुला, घू, पनियन, टोडा, गोंड, खोड, मालसर, ओरांव इत्यादि इस वर्ग के अंतर्गत आने वाली कुछ जनजातियाँ है।
– आस्ट्रिक भाषा परिवार (Austric Speech Family)
ऑस्ट्रिक भाषा परिवार का संबंध ऑस्ट्रेलायड से माना जाता है। मध्य प्रदेश, असम, बिहार, उड़ीसा, और पश्चिम बंगाल में बड़ी मात्रा में भुमिज़, गारो, कोलू, खासी, मुण्डा, हो, खरिया, संथाली, इत्यादि जन जातियां निवास करती है। कई भाषा शास्त्रियों के मुताबिक मुंडा भाषा यह भारत की सबसे प्राचीन भाषाओं में से एक है, जो यहां निवास करने वाले जनजातियों द्वारा बोली जाती है।
– चीनी-तिब्बती भाषा परिवार (Sino-Tibetan Speech Family)
इस शाखा के अंतर्गत आने वाली जनजातियाँ खासी, खमटी, गलोंग, पदम, मिशनी, सिंहपो, लेपचा, गारो, कूकी, मिरी, गलोंग, पासी, पंगी इत्यादि है। मूल रूप से चीनी तिब्बती भाषा परिवार वाले इस वर्ग का संबंध मंगोल जनजाति से है। पूर्वोत्तर बंगाल, दक्षिणी हिमालय, असम इत्यादि जैसे कई सीमा प्रांत और ढलान वाले जगहों पर यह जनजातियाँ पाई जाती हैं।
मंडारिन और तिब्बत की मिश्रित भाषा बोलने वाले यह लोग आज के समय में विलुप्त होने की कगार पर है। इन समुदायों की भाषा बेहद जटिल मानी जाती है। कई घुमंतू जनजातियाँ अब बाहरी समाज के संपर्क में आने से नई भाषाएं बोलने लगी हैं, जिसके कारण चीनी तिब्बती भाषा परिवार के ऊपर अध्ययन करना और भी जटिल हो गया है।